मर रहा है देश
हाल है बेहाल क्या गरीब क्या अमीर मर रहा है हर एक
भीड नही है अब गलियों मे ना बाजारो मे सूनी है सडके
होता था कभी जहाँ पसरा सन्नाटा वहा लगी है कतार लम्बी शमशान मे जगह नही है भरे हुए है कब्रिस्तान
देश मर रहा है देख रहा है इन्सान
ना छुट रहा है फिर भी इसका लालच देख रहा है भगवान
मर रहा है देश
विकास धानका
Comments
Post a Comment